पुरातत्त्वीय अभिलेख किस प्रकार बनावटी रूप में प्रस्तुत किये गये हैं।

ताजमहल को शाहजहाँ ने नहीं बनवाया था, फतहपुर सीकरी की स्थापना अकबर ने नहीं की थी, और  ना ही आगरे का लालकिला उसके बनवाया था। कुतुब मीनार कुतुबउद्दीन ने नहीं बनवाया था। इस प्रकार, लगभग प्रत्येक मध्यकालीन ऐतिहासिक भवन, पुल अथवा नहर का झूठा, असत्य निर्माण-श्रेय विदेशी मुस्लिमों को दे दिया गया है, यद्यपि तथ्य यह है कि इनमें से प्रत्येक वस्तु का निर्माण, शताब्दियों पूर्व ही भारत के हिन्दू शासकों द्वारा कर दिया गया था ।

इस प्रकार के असत्य, बनावटी प्रस्तुतीकरण का मूल कारण भारत की १२०० वर्षीय दीर्घकालीन दासता है जिसमें  विदेशी शासकों ने भारतीय पुरातत्व का सर्वनाश कर दिया है, और मनमाना खिलवाड़ किया है ।

It is a False History that Taj Mahal is built by Shah Jahan

भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना होने से पूर्व ‘पुरातत्व विभाग’ नामों निशान भी नहीं था। दीर्घकालीन विदेशी मुस्लिम शासन में हिन्दू-भवनों को बलात्-ग्रहण करने और उन्हीं को मस्जिदों व मकबरों के रूप में दुरुपयोग करने की एक लम्बी अकथनीय कहानी थी। इसलिए, भारत में जब ब्रिटिश सत्ता शासनारूढ़ हुई, तब सभी ऐतिहासिक भवन बहुत पहले ही मकवरों और मस्जिदों में परिवर्तित होकर मुस्लिमों के आधिपत्य और कब्ज़े में थे। जब ब्रिटिश लोगों ने भारत में सर्वप्रथम पुरातलल विभाग की स्थापना की, और सभी स्थानों पर विद्यमान  मुस्लिमों से परामर्श किया और उनकी बतायी हुई मनगढन असत्य बातों को अंकित कर लिया। ऐसी ही झूठी बाते भारत सरकार के सम्मानित पुरातत्व विभाग का मूल भाग बन चकी हैं।

Fatehpur Sikri is not established by Akbar

इन भवनों पर स्वामित्व अथवा कब्ज़ा किए हुए मृस्लिम लोग उन भवनों के मुस्लिम-पूर्व वास्तविक मूलोद्गम अथवा स्वामित्व पर सच्चा प्रकाश डालने में रुचि नहीं रखते थे क्योंकि उनको आशंका थी कि वदि उन्होंने किसी भी भवन के  हिन्दू-मूलोद्गम स्वीकार कर लिया या उसकी चर्चा कर ली, तो उनका उस भवन पर से अधिकार-स्वामित्व या कब्ज़ा छीन लिया जाएगा।

 किसी भवन के बारे में बार-बार यह कहने से, कि वह किसी का मकबरा अथवा मस्जिद है, स्वतः यह प्रपंच प्रचलित हो गया हो गया कि इस भवन का मूल-निर्माण ही उसी प्रयोजन से हुआ है। ब्रिटिश पुरातत्त्वीय विभाग के कर्मचारियों को अनुभव करना चाहिए था कि हिन्दुओं से छीन लेने के बाद उन भवनों को मकबरों और मस्जिदों के रूप में उपयोग में लाया गया था। उदाहरण के लिए, आज जिन भवनों को अकबर के. अथवा सफदरजंग के, अथवा हुमायू के मकबरे के रूप में देखता है, उनका भाव-द्योतन मात्र इतना ही हो सकता है कि (यदि सचमुच ही वहां कुछ है तो) वहाँ पर वे विशिष्ट व्यक्ति दफ़नाए गए है। किन्तु यह कल्पना करना कि वे राजभवनों के सदृश विशाल, भव्य भवन उनके दफनाने के स्थानों और स्मारकों के रूप में बनाए गये थे, घोर ऐैतिहासिक और पुरातस्वीय भूल है । वे भवन तो वहुत पहले से विद्यमान थे। विदेशी मुस्लिम विजित भवनों में निवास करते रहे और शायद वहीं दफ़ना दिये गये। उन विशाल, भव्य भवनों में इनका दफनाया जाना भी सन्दिग्ध ही है। यह भी हो सकता है कि उन भव्य भवनों के भीतर बनी हुई अधिकांश कब्रें झूठी और जाली हैं।

Qutab Minar has not been made by any Muslim Invader. It exits before Islam was born.

 ब्रिटिश सरकार ने जब भारत में पुरातत्त्व विभाग की स्थापना करनी शुरू कर दी, तब उन्होंने देखा कि ऐतिहासिक भवनों में से अधिकांश भवन मुस्लिम आधिपत्य और कब्जे में थे। अपने जाते हुए  साम्राज्य की विरही स्मृतियों को सँजोए हुए उन मुस्लिमों को इसी बात से पर्याप्त सन्तोष था कि कम-से-कम सभी भवनों को पूर्वकालिक मुस्लिम शासकों द्वारा बनाया हुआ ही घोषित कर दिया जाये। ब्रिटिस शाशन ने 1860 मे  Archaeological सर्वे आफ इंडिया की स्थापना की और उन्होने मुसलमानो के नाम कर दिये सारी इमारते।

 कुछ उदाहरण के लिए जानिए की अमरकोट किले के पास, सिन्ध प्रान्त में जिस स्थान पर पुरातत्त्वीय सूचना-पट यह बताते हुए लगा है कि यहाँ पर अकबर का जन्म हुआ था, वह स्थान सही नहीं है।

इसी प्रकार पंजाब में कलानौर नामक स्थान पर कुछ हिन्दू भवान हैं, जहां पर पुरातत्व विभाग की ओर से शिनाख्त के बाद यह सूचना-पट लगाया गया है कि यह वह स्थान है जहाँ पर १३वर्षीय किशोर अकुबर को बादशाह घोषित किया गया था। यही वह स्थान है जहा अकबर को उसके पिता बादशाह हुमायूँ की मृत्यु का समाचार उस समय सुनाया गया था जब १३वर्षीय अकबर वहाँ पड़ाव डाले पड़ा हुए था।

अकबर, जो उस समय बालक हैी था, उस स्थान पर किस प्रकार एक विशाल भवन निर्माण करा सकता था? उसका पितां भी बहाँ कोई भवन नहीं बनवा सकता था क्योंकि एक अन्य घमण्डी मुस्लिम सरदार द्वारा देश से बाहर खदेड़ दिये जाने के कारण, देश से बाहर १५ वर्ष तक रहने के बाद वह भारत में लौटा था । इसलिए यदि निर्दिस्त स्थान पर ही अकबर की ताजपोसी हुई थी, तो उसका अर्थ यह है कि वह उस समय एक पूर्वकालिक हिन्दू भवन में वह पड़ाव डाले हुए था जो पूरी तरह अथवा आंशिक रूप में बारम्बार होने वाले मुस्लिम आक्रमणों से नष्ट हो गया था।

इसी तरह मोहम्मद गवन एक घुमक्कड़ और खोजी व्यक्ति था जो बे-मतलब घूमता हुआ चौदहवीं शताब्दी में पश्चिमी एशिया के मृस्लिम देशों से भारत में आ पहुचा था । वह एक बहमनी सुलतान का वज़ीर हो गया किन्तु एक बहुत थोड़ी अनिश्चित अवधि मात्र के लिए ही। उमका पतन भी समान रूप में हड़बड़ी में हुआ । उसकी हत्या भी उसी सुलतान के आदेशानुसार की गयी जिसका मोहम्मद गवन वजीर था। सामान्यतः जो व्यक्ति शासक या सुलतान की नजरों से गिर जाता था, उसको नियमित रूप से दफ़नाया भी नहीं जाता था। ऐसे  व्यक्ति के शरीर के ट्कड़े-टुकड़े कर दिये जाते थे और बोटियों को चीलों और कृत्तों के खाने के लिए फैंक दिया जाता था। मोहम्मद गवन का अन्त इससे कुछ अच्छा नहीं हो सकता था। यह बात इस तथ्य से भी स्पष्ट थी कि सन् १६४५ ई० तक उसकी कब्र पहचानी नहीं जा सकी थी। फिर, अचानक कोई मूस्लिम उग्रवादी पुरातत्त्वीय कर्मचारी  बीदर गया और वहाँ सड़क के किनारे बनी हुई असंख्य, नगण्य, अनाम कब्रों में से एक को मोहम्मद गवन की कब्र घोषित कर आया। उस समय से ही सभी प्रकार के अन्वेषक जबर्दस्ती उस कब्र को मोहम्मद गवन की कब्र के रूप में उल्लेख करने लगे क्योंकि अब उसपर सरकारी छाप और मान्यता उपलब्ध हो गयी थी।

कुछ दसको पूर्व एक पूरातत्त्व कर्म चारी के मन में यह विचार आया कि अबुल फ़ज़ल की कब्र को खोजा जाय। अबुल फ़ज़ल तीसरी पीढ़ी के मुग़ल बादशाह अकबर का दरबारी और तथाकथित स्वघोषित तिथिवृत्त लेखक था। इतिहास में उल्लेख है कि सन् १६०२ ई० के अगस्त मास की १२तारीख को नरवर से १०-१२ मील की दूरी पर सराय बरार नामक एक स्थान के आस-पास अवूल फ़ज़ल को धात लगाकर मार डाला गया था उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये थे । इस प्रकार की निरर्थक, अनिश्चित और सुनी-सुनायी बातों से प्रारम्भ करते हुए बह कर्मचारी निर्दिष्ट स्थान पर जा पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि एक बड़े क्षेत्र में बहुत सारी कब्रें इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं। अफ़सरशाही के अनुसार धारणा बनाते हुए उसने लगभग बीसियों कब्रों में से कुछ कब्रों का एक समूह चुन लिया और यह विचार कर लिया कि उनमें से एक तो अबुल फ़ज़ल की कब्र होगी तथा शेष उसके उन परिचरों की होंगी जो उसके साथ ही उस घात में मारे गये होंगे। अगला प्रश्न यह था कि उन चार या पाँच कब्रों में से अबुल फ़ज़ल की कब्र को किस प्रकार पहचाना जाए । इन चार या पाँच कब्रों में से एक कब्र अन्य कब्रों से कुछ इंच अधिक लम्बी थी वही उसकी होगी। पुरातत्व कर्मचारी के लिए वह पर्याप्त और बहुत बड़ी बात थी । महान अकबर के सम्मानित दरबारी को दफ़नाने के पवित्र स्थान के रूप में इसे तुरन्त पहचान लिया गया था । पुरातत्त्वीय पंजिकाओं में भी इस तथ्य को इसी प्रकार अंकित कर दिया गया । इसके इर्द-गिर्द कमरा बनाने के लिए और कदाचित् एक स्थायी रूप में देखभाल करने वाले का वेतन भुगतान करने के लिए कुछ धन-राशि मंजूर कर दी गयी थी । उस समय से इतिहास और पुरातत्त्व के असावधान विद्यार्थी-गण विवश हो गये थे कि वे उस स्थान को अबुल फ़ज़ल की हत्या के रूप में स्थल को शैक्षिक मान्यता दें |।

जब अकबर ने स्वयं ही अबुल फ़ज़ल की कब्र की कोई परवाह नहीं की अथवा उसकी कब्र की पहचान में वह असमर्थ रहा, तो ४५० वर्षों के बाद, बिना किसी विशिष्ट आधारभूत सामग्री के नगण्य क्षेत्र में बिखरी पड़ी सैकड़ों कब्रों में से अबुल फ़ज़ल की कब्र को इस प्रकार पहचान सकने की कोई आशा कोई पुरातत्व-कर्म चारी कर सकता था ?

ये उदाहरण इस बात के लिए पर्याप्त होने चाहिए कि पुरातत्त्व और इतिहास के कर्मचारी और विद्यार्थी-गण ऐतिहासिक (मध्यकालीन) स्थलों के सम्बन्ध में पुरातत्त्वीय पहचान की ओर अधिक विशेष ध्यान न दें, उन पर अत्यधिक विश्वास न करें । विभिन्न अन्तः-प्रेरणाओं, मनोभावों के कारण झूठी-सच्ची बातें लिखी गयी हैं । सभी पुरातत्त्वीय अभिलेखों को, अत्यन्ता सावधानीपूर्वक संशोधित करने, पुनः देखुने-भालने और संकलिंत करने की आवश्यकता है।

पुरातत्त्वीय अभिलेख किस प्रकार बनावटी रूप में प्रस्तुत किये गये हैं।

Join as a Research Volunteer or Social Media Ambassador!

How Humanity Has Been Deceived for Centuries

Cities Without Temples, Without Crime, Without Writing

How India’s Ancient Temples Were Rebranded as Mosques and Tombs

Why British Historians Lied About India's Glorious Past

Aryan Invasion Theory – The Greatest Historical Conspiracy Against India

India – The Source Civilization Evident from Global Migration Patterns

Ayurveda and Yoga – India’s Timeless Gifts to the World

Indians Knew the Earth Was Round Long Before the Greeks

Vimana Shastra India’s Ancient Flight Manual or Cosmic Allegory

Cosmic Time and the Yugas – India’s Eternal Clock of Consciousness

India Under Siege – The Invisible War Within and Beyond

India’s Ancient Urban Legacy – Older Than Mesopotamia and Egypt

Why the Vatican Won’t Acknowledge Jesus in India

Jesus and the Eastern Path

India in the Bible

Jesus at the Rozabal Shrine

The Hidden Journey – Where Jesus Walked Across India

The Hidden Journey – Where Jesus Walked Across India

Reincarnation in Christianity

The Architects of Deception – Who Twisted Indian History and Why

The Conversion War – From Ghazni to Changur Baba: How India’s Soul Was Targeted for Centuries

How Humanity Has Been Deceived for Centuries

How Indian Civilization Reached Southeast Asia – A Peaceful Cultural Expansion

Can We Still Trust Historians and Scientists?

Saraswati: The River That Rewrites History

Rakhigarhi: DNA of Continuity – My Journey into the Living Past

Kalibangan: Where Farming and Faith Began – My On-Ground Discovery

Bhirrana: Standing on the World’s Oldest Harappan Site – My Journey of Truth

Mehrgarh: The First Village of the World – My Journey of Discovery

Bharat Before History Began – Discoveries Through My 35-Year Journey

India Respected Nature – The World Exploited It

The World Keeps Vedic Time – The Forgotten Global Legacy of Bharat

Why Hindi Is Superior to English in Expression and Communication

A Lot Has Been Done After 2014

Still in Chains? How Post-Independence Rulers Continued the British Agenda

India: The World’s Oldest University System – A Civilization That Educated the World

Why Do Indian History Books Start with Invaders – Unmasking the Colonial Blueprint

India: The Wealthiest Civilization the World Ever Knew – Until 200 Years Ago

The Ancient Sanskrit Atlas – How the Whole World Spoke the Language of the Vedas

Who Really Wrote Our History Textbooks? – Unmasking the Ghostwriters of Indian History

Jesus Lived in India – The Journey the West Hid