ज्ञान का दीपक, धर्मों के पहले जला
तक्षशिला विश्वविद्यालय—जिसे संस्कृत में तक्षशिला कहते हैं—विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। इसका इतिहास ईसा पूर्व 7वीं शताब्दी या उससे भी पहले का है। कुछ भारतीय परंपराओं के अनुसार इसकी स्थापना रामायण काल में हुई थी।
यह वह समय था जब:
यानी तक्षशिला का ज्ञान युगों से पहले था, जब धर्मों का जन्म भी नहीं हुआ था।
विश्वविद्यालय नहीं, ज्ञान का महातीरथ
तक्षशिला कोई साधारण पाठशाला नहीं थी। यह विज्ञान, चिकित्सा, गणित, राजनीति, युद्धकला, वेद, संगीत, व्याकरण, और दर्शन जैसे अनेक विषयों का अंतरराष्ट्रीय केंद्र था।
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विद्यार्थी आते थे। धर्म कोई बाधा नहीं थी। जो भी ज्ञान का प्यासा था, वह तक्षशिला का स्वागत योग्य था।
🧠 जब आस्था नहीं, समझ थी सर्वोपरि
आज की शिक्षा-व्यवस्था में धर्म और राजनीति का प्रभाव देखा जाता है, पर तक्षशिला में केवल ज्ञान की पूजा होती थी। न कोई उपदेश, न कोई धर्म ग्रंथों का अंध अनुसरण।
वहाँ तर्क होता था, प्रयोग होता था, शंका का सम्मान होता था।
👨🏫 जिन्होंने इतिहास रच दिया
तक्षशिला के विद्यार्थियों और शिक्षकों में वे नाम शामिल हैं जिनके बिना भारतीय इतिहास अधूरा है:
🔥 इतिहास से क्यों मिटाया गया?
यदि तक्षशिला इतना महान था, तो इतिहास की किताबों में इसका गौरव क्यों नहीं बताया गया?
क्योंकि ब्रिटिश और पश्चिमी इतिहासकारों ने जानबूझकर भारतीय गौरव को दबाया, ताकि यह न लगे कि भारत कभी विश्वगुरु था।
उन्होंने एक झूठ फैलाया कि सभ्यता ग्रीस और रोम से शुरू हुई, जबकि तक्षशिला उस काल में भी जगमगा रहा था जब यूरोप अंधकार में डूबा था।
🏹 तथ्य नहीं, प्रयोग आधारित शिक्षा
तक्षशिला में शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं थी। विद्यार्थी:
यहाँ शिक्षा अनुभव आधारित थी, केवल रटना नहीं।
🌐 भारत: ज्ञान का शाश्वत दीपक
तक्षशिला ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत केवल एक भूभाग नहीं, बल्कि मानवता की चेतना का केंद्र था।
गुरुकुल परंपरा की जड़ें यहीं थीं, जहाँ विद्यार्थी गुरु के साथ रहकर अनुशासन, सेवा और आत्मविकास सीखते थे।
आज तक्षशिला के खंडहर UNESCO द्वारा संरक्षित हैं, पर वे आज भी कान में फुसफुसाते हैं—
“धर्मों से पहले, केवल ज्ञान था।”
🧭 पश्चिमी इतिहास को चुनौती
तक्षशिला को अगर सही ऐतिहासिक स्थान दिया जाए, तो पश्चिमी सभ्यता के झूठ खुद-ब-खुद उजागर हो जाते हैं।
भारत ने वह शिक्षा प्रणाली दी जो धर्म, जाति, राष्ट्र, भाषा—इन सबसे ऊपर थी।
क्या यह संभव है कि धर्मों की नैतिकता उन्हीं प्राचीन विश्वविद्यालयों से जन्मी हो?
✍️ भारत को फिर बनना होगा ‘विश्वगुरु’
आज का भारत अपने ही इतिहास से अनजान है। हमें तक्षशिला जैसे केंद्रों को केवल पुरातत्व समझ कर छोड़ नहीं देना चाहिए।
हमें गर्व से दुनिया को बताना होगा—
जब धर्मों का जन्म भी नहीं हुआ था, भारत ज्ञान में दीप जला चुका था।
तक्षशिला एक स्मारक नहीं, चेतना है।