बिग बैंग सिद्धांत की खामियाँ और भारतीय दृष्टिकोण
बिग बैंग सिद्धांत उस बिंदु से शुरू होता है जहाँ विज्ञान के नियम समाप्त हो जाते हैं। परंतु भारतीय दृष्टिकोण में सृष्टि किसी “शून्य” से नहीं, बल्कि प्रकृति (संख्य दर्शन) या ब्रह्म (वेदांत) जैसे शाश्वत तत्वों से उत्पन्न होती है।
बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक असीम रूप से गर्म और सघन बिंदु से हुई। वहीं भारतीय दर्शन, विशेषकर वेद, उपनिषद, संख्य व अद्वैत वेदांत, ब्रह्मांड को अनादि और अनंत मानते हैं—जिसमें सृष्टि का कोई एक आरंभ नहीं, बल्कि निरंतर सृजन और संहार का चक्र है।
कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड में समान तापमान, दूर–दूर के क्षेत्रों में कैसे संभव है? “इंफ्लेशन थ्योरी” इसका उत्तर देती है, परंतु ठोस प्रमाण नहीं है। भारत का ऋत सिद्धांत इस सार्वभौमिक समरसता को प्राकृतिक नियम के रूप में देखता है।
ब्रह्मांड की समतलता इतने सटीक प्रारंभिक परिस्थितियों की मांग करती है कि यह संयोग नहीं हो सकता। भारतीय ऋषियों के अनुसार यह संतुलन ऋत या प्राकृतिक व्यवस्था का ही प्रमाण है।
बिग बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड को समझाने के लिए अदृश्य डार्क मैटर और एनर्जी पर निर्भर है। परंतु भारतीय दृष्टिकोण सूक्ष्म तत्वों और ऊर्जाओं को सदैव मान्यता देता आया है।
बहुत शीघ्र उत्पन्न हुई विशाल गैलेक्सियाँ इस सिद्धांत की समय–रेखा को चुनौती देती हैं। क्या यह भारत के कल्पों और युगों के अनुसार ब्रह्मांड के लंबे कालचक्र की पुष्टि नहीं है?
क्या यह षड्यंत्र था? भारतीय ज्ञान को छुपाना
बिग बैंग जैसी सिद्धांत पश्चिमी विचारधारा की रेखीय समय दृष्टि को पोषित करता है—एक आरंभ और अंत। इसके विपरीत भारतीय विचार समय को चक्र रूप में देखता है। क्या यह “विज्ञान” भारत के ज्ञान को दबाने का औजार बन गया?
भारत का ब्रह्मांड विज्ञान – सच्चा विकल्प
निष्कर्ष: असली ब्लंडर क्या है?
शायद बिग बैंग कोई वैज्ञानिक भूल नहीं, बल्कि हमारी सोच की गलती है। जब हम अनंत कालचक्र को भूल एक सीमित आरंभ पर जोर देते हैं, तब हम उस ब्रह्मांडीय नृत्य को नकारते हैं जो भारत ने हजारों वर्षों से समझा है।